परबत बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर

 

परबत बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर

बिखरी पड़ी हैं कितनी ख़ुशियाँ मेरे चारों ओर

 

इन ही के हाथों में हैं जादू वाली छड़ियाँ

खेलती रहती हैं जो परियाँ मेरे चारों ओर

यूँ तो वो बिल्कुल पानी के जैसा था

 ब-यादे इरशाद खान सिकन्दर

 

यूँ तो वो बिल्कुल पानी के जैसा था

लेकिन उसपर रंग नहीं चढ़ पाता था

 

रूह थिरकने लगती थी सुनकर उसको

बानी में इक ढोल खड़कता रहता था

विसालो-हिज़्राँ की नद्दियों की रवानियों में हमारा क्या है

 

विसालो-हिज़्राँ की नद्दियों की रवानियों में हमारा क्या है

सनम हैं तो हम भी हैं वगरना कहानियों में हमारा क्या है

 

जो खंडरों को सजा रही है हम उस उदासी के हैं शहंशा’

महल दुमहलों में रक़्स करती वीरानियों में हमारा क्या है

ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं


ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं।
आप भी चलिये ज़रा दूर  टहल आते हैं॥

आप के जाते ही ग़म के पसर जाता है।
दिल की दीवार से छज्जे भी निकल आते हैं॥

उस की उन मदभरी आँखों में हया भरते हुये


उस की उन मदभरी आँखों में हया भरते हुये।
बोलना भूल गये लोग सदा भरते हुये॥

उस बलानोश की आँखों का यही है फ़रमान।
और बदलाव करो रंग नया भरते हुये॥

हवा का हाथ परों से जो मैं बँटाता हूँ

हवा का हाथ परों से जो मैं बँटाता हूँ।
ये मुझ प फ़र्ज़ है साहब मैं इक परिन्दा हूँ॥

मेरी उदास नज़र को न कोसिये साहब।
मैं बारिशों में तरसता हुआ पपीहा हूँ॥

बर्फ़ अगरचे पिघल रही होगी

 

बर्फ़ अगरचे पिघल रही होगी

बात कर पर ही टल रहेगी

 

आज हम इतना मुस्कुराये हैं

बेकली हाथ मल रही होगी

कहा था जिसको सहेली, उसी ने काट दिया

 

कहा था जिसको सहेली, उसी ने काट दिया 

तुम्हारा नाम तुम्हारी सखी ने काट दिया

 

कहो तो लेप लगा दूँ तनिक वहाँ भी मैं

कटिप्प्रदेश जहाँ करधनी ने काट दिया

बिछाकर रासतों में ख़ार तुमने

 

बिछाकर रासतों में ख़ार तुमने

दुखाया दिल मेरा क्यों यार तुमने

 

ख़याल अब कौन रक्खेगा तुम्हारा

मुझे भी कर दिया बीमार तुमने

न जाने रीत किसने प्रीत की ऐसी बनाई है

न जाने रीत किसने प्रीत की ऐसी बनाई है

ये ऐसा रोग है जिसमें मसीहा ही दवाई है

 

भला ऐसे मरज़ में तंदुरुस्ती कौन चाहेगा

मुहब्बत में तो बस बीमार रहने में भलाई है

तुमको पल-पल सता नहीं सकता

तुमको पल-पल सता नहीं सकता

सच बता कर रुला नहीं सकता

 

सच यही है कि इश्क़ है तुमसे

मैं बहाने बना नहीं सकता

गिनती होती थी जिनकी किरदारों में

 

गिनती होती थी जिनकी किरदारों में

डूब गये पाज़ेबों की झनकारों में

 

एक समय ऐसा भी हमने देखा है

होड़ हुआ करती थी जब ख़ुद्दारों में

किन्हीं हाथों से छीना जा रहा हूँ

 

किन्हीं हाथों से छीना जा रहा हूँ

किन्हीं हाथों में सौंपा जा रहा हूँ

 

मैं ख़ुशबूओं में रहना चाहता था

सो मिट्टी में मिलाया जा रहा हूँ

आदमी के हाथ में पैसे नहीं हैं

 

आदमी के हाथ में पैसे नहीं हैं

दोस्त ये हालात कुछ अच्छे नहीं हैं

 

हम वही हैं शून्य खोजा था जिन्होंने

अब इशारे तक समझ पाते नहीं हैं

देख ले ज़ालिम तेरे हाथों के तोते उड़ गये

 

देख ले ज़ालिम तेरे हाथों के तोते उड़ गये

है सलामत इश्क़ नफ़रत के परख़चे उड़ गये

 

चैन से मिलजुल के दाने चुग रहे थे खेत में

इक ज़रा आहट हुई सारे परिन्दे उड़ गये

पहिचान लीजिये न इशारे बहार के

 

पहिचान लीजिये इशारे बहार के

दहलीज़ पै खड़े हैं नज़ारे बहार के

 

जब-जब भी हमने गेसू सँवारे बहार के

हमको मिले हैं सारे सहारे बहार के

मुझे ये बात परेशान कर रही है बहुत

 

मुझे ये बात परेशान कर रही है बहुत

अना जहान का नुक़्सान कर रही है बहुत

 

भले ही जश्न में तब्दील हो रही है हसद

मगर मुझे तो पशेमान कर रही है बहुत

हँसता और हँसाता है बेबात कभी रोता ही नहीं

 एक ग़ज़ल मुम्बई शहर के नाम 

हँसता और हँसाता है बेबात कभी रोता ही नहीं

सारी दुनिया सो जाये ये शहर कभी सोता ही नहीं

 

हमने इसको हर आगत का स्वागत करते देखा है

किसी की राहों में काँटे ये शहर कभी बोता ही नहीं

अपुन दौनों के ग़म अब एक जैसे रह नहीं पाये

 

अपुन दौनों के ग़म अब एक जैसे रह नहीं पाये

तभी तो आपसे हम दिल की बातें कह नहीं पाये

राज़ खुल भी गया तो क्या होगा

 

राज़ खुल भी गया तो क्या होगा

बस हक़ीक़त से सामना होगा

 

अगली बारिश को मुन्तज़िर है वह

उसका दुख वो ही जानता होगा